मैं कुरुक्षेत्र का निवासी हूँ. मेरी उम्र ३८ वर्ष है. मेरे गुरु स्वामी निखिल हैं.
रस मणि का निर्माण एक जटिल रासायनिक प्रक्रिया है. जिसके लिए अटूट धैर्य , निष्ठा, लगन, समर्पण और धन की आवश्यकता होती है. अगर आप अपना पूरा जीवन समर्पित कर सकते हैं तो आपका स्वागत है, अन्यथा इसे भूल जाइये. मुझे २३ वर्ष हो गए हैं. परन्तु आपको समय कम लगेगा क्योंकि आपको मेरी तरह कई जगहों पर भटकना नहीं पड़ेगा.
मैं अभी रूस में हूँ मैं योग-तंत्र की साधना करता हूँ रस मणि के निर्माण और सुरक्षा के लिए रस भैरव, रसेश्वरी देवी और शिव साधना के साथ-साथ कोई एक उग्र महाविद्या साधना ( छिन्नमस्ता ) भी होनी चाहिए. रस शाला के निर्माण के लिए कुछ साधनों और सामग्री की आवश्यकता होती है. मैं तुम्हे सब बताऊंगा.. पर भारत वापस आने के बाद. मैं अगस्त में वापस आ रहा हूँ. शायद २० अगस्त को. तब तक इंतजार करो और मेरा ब्लॉग पढ़ते रहो. हाँ... तुम्हे इस कार्य में कुछ कच्ची मिटटी की जमीन की भी जरुरत पड़ेगी.
रस मणि का निर्माण एक जटिल रासायनिक प्रक्रिया है. जिसके लिए अटूट धैर्य , निष्ठा, लगन, समर्पण और धन की आवश्यकता होती है. अगर आप अपना पूरा जीवन समर्पित कर सकते हैं तो आपका स्वागत है, अन्यथा इसे भूल जाइये. मुझे २३ वर्ष हो गए हैं. परन्तु आपको समय कम लगेगा क्योंकि आपको मेरी तरह कई जगहों पर भटकना नहीं पड़ेगा.
मैं अभी रूस में हूँ मैं योग-तंत्र की साधना करता हूँ रस मणि के निर्माण और सुरक्षा के लिए रस भैरव, रसेश्वरी देवी और शिव साधना के साथ-साथ कोई एक उग्र महाविद्या साधना ( छिन्नमस्ता ) भी होनी चाहिए. रस शाला के निर्माण के लिए कुछ साधनों और सामग्री की आवश्यकता होती है. मैं तुम्हे सब बताऊंगा.. पर भारत वापस आने के बाद. मैं अगस्त में वापस आ रहा हूँ. शायद २० अगस्त को. तब तक इंतजार करो और मेरा ब्लॉग पढ़ते रहो. हाँ... तुम्हे इस कार्य में कुछ कच्ची मिटटी की जमीन की भी जरुरत पड़ेगी.
क्या तुमने रसशास्त्र का अध्ययन किया है?
रस शास्त्र का अध्ययन करना अति आवश्यक है. बिना ज्ञान के सिद्धि नहीं मिलती. . आधुनिक रसायन शास्त्र का ज्ञान अनिवार्य है. इससे कार्य-कारण सिद्धांत को समझने में सहायता मिलती है. पर अंग्रेजी पुस्तकों के सहारे रस मणि नहीं बनाई जा सकती. संस्कृत का ज्ञान अनिवार्य तो नहीं है पर अगर हो तो अच्छा है.
पारद के १८ संस्कार होते हैं. पहले ८ संस्कार शोधन के लिए और अगले १० संस्कार विभिन्न गुणों को पैदा करने के लिए होते हैं.
पारद के १८ संस्कार होते हैं. पहले ८ संस्कार शोधन के लिए और अगले १० संस्कार विभिन्न गुणों को पैदा करने के लिए होते हैं.
रस मणि जो की उड़ने की शक्ति देती है उसे आकाश गमन गुटिका कहते हैं.
पारद के १६ वें संस्कार से पारद में इस शक्ति का उदय होता हैं.
रस मणि में १००% पारद ही होता है.