Saturday, February 16, 2013


सायन शास्त्र का सम्बन्ध धातु विज्ञान तथा चिकित्सा विज्ञान से भी है। वर्तमान काल के प्रसिद्ध वैज्ञानिक आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय ने ‘हिन्दू केमेस्ट्री‘ ग्रंथ लिखकर कुछ समय से लुप्त इस शास्त्र को फिर लोगों के सामने लाया। रसायन शास्त्र एक प्रयोगात्मक विज्ञान है। खनिजों, पौधों, कृषिधान्य आदि के द्वारा विविध वस्तुओं का उत्पादन, विभिन्न धातुओं का निर्माण व परस्पर परिवर्तन तथा स्वास्थ्य की दृष्टि में आवश्यक औषधियों का निर्माण इसके द्वारा होता है।
पूर्व काल में अनेक रसायनज्ञ हुए, उनमें से कुछ की कृतियों निम्नानुसार हैं।

नागार्जुन-रसरत्नाकर, कक्षपुटतंत्र, आरोग्य मंजरी, योग सार, योगाष्टक
वाग्भट्ट – रसरत्न समुच्चय
गोविंदाचार्य – रसार्णव
यशोधर – रस प्रकाश सुधाकर
रामचन्द्र – रसेन्द्र चिंतामणि
सोमदेव- रसेन्द्र चूड़ामणि
रस रत्न समुच्चय ग्रंथ में मुख्य रस माने गए निम्न रसायनों का उल्लेख किया गया है-
(१) महारस (२) उपरस (३) सामान्यरस (४) रत्न (५) धातु (६) विष (७) क्षार (८) अम्ल (९) लवण (१०) लौहभस्म।
महारस

 (१) अभ्रं (२) वैक्रान्त (३) भाषिक (४) विमला (५) शिलाजतु (६) सास्यक (७)चपला (८) रसक
उपरस :-

 (१) गंधक (२) गैरिक (३) काशिस (४) सुवरि (५) लालक (६) मन: शिला (७) अंजन (८) कंकुष्ठ
सामान्य रस-

 (१) कोयिला (२) गौरीपाषाण (३) नवसार (४) वराटक (५) अग्निजार (६) लाजवर्त (७) गिरि सिंदूर (८) हिंगुल (९) मुर्दाड श्रंगकम्‌
इसी प्रकार दस से अधिक विष हैं।

अम्ल का भी वर्णन है। द्वावक अम्ल (च्दृथ्ध्ड्ढदद्य ठ्ठड़त्ड्ड) और सर्वद्रावक अम्ल (ठ्ठथ्थ्‌ ड्डत्द्मद्मदृथ्ध्त्दढ़ ठ्ठड़त्ड्ड)
विभिन्न प्रकार के क्षार का वर्णन इन ग्रंथों में मिलता है तथा विभिन्न धातुओं की भस्मों का वर्णन आता है।
प्रयोगशाला- 

रस-रत्न-समुच्चय‘ अध्याय ७ में रसशाला यानी प्रयोगशाला का विस्तार से वर्णन भी है। इसमें ३२ से अधिक यंत्रों का उपयोग किया जाता था, जिनमें मुख्य हैं- (१) दोल यंत्र (२) स्वेदनी यंत्र (३) पाटन यंत्र (४) अधस्पदन यंत्र (५) ढेकी यंत्र (६) बालुक यंत्र (७) तिर्यक्‌ पाटन यंत्र (८) विद्याधर यंत्र (९) धूप यंत्र (१०) कोष्ठि यंत्र (११) कच्छप यंत्र (१२) डमरू यंत्र।
प्रयोगशाला में नागार्जुन ने पारे पर बहुत प्रयोग किए। विस्तार से उन्होंने पारे को शुद्ध करना और उसके औषधीय प्रयोग की विधियां बताई हैं। अपने ग्रंथों में नागार्जुन ने विभिन्न धातुओं का मिश्रण तैयार करने, पारा तथा अन्य धातुओं का शोधन करने, महारसों का शोधन तथा विभिन्न धातुओं को स्वर्ण या रजत में परिवर्तित करने की विधि दी है।
पारे के प्रयोग से न केवल धातु परिवर्तन किया जाता था अपितु शरीर को निरोगी बनाने और दीर्घायुष्य के लिए उसका प्रयोग होता था। भारत में पारद आश्रित रसविद्या अपने पूर्ण विकसित रूप में स्त्री-पुरुष प्रतीकवाद से जुड़ी है। पारे को शिव तत्व तथा गन्धक को पार्वती तत्व माना गया और इन दोनों के हिंगुल के साथ जुड़ने पर जो द्रव्य उत्पन्न हुआ, उसे रससिन्दूर कहा गया, जो आयुष्य-वर्धक सार के रूप में माना गया।
पारे की रूपान्तरण प्रक्रिया-

इन ग्रंथों से यह भी ज्ञात होता है कि रस-शास्त्री धातुओं और खनिजों के हानिकारक गुणों को दूर कर, उनका आन्तरिक उपयोग करने हेतु तथा उन्हें पूर्णत: योग्य बनाने हेतु विविध शुद्धिकरण की प्रक्रियाएं करते थे। उसमें पारे को अठारह संस्कार यानी शुद्धिकरण प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था। इन प्रक्रियाओं में औषधि गुणयुक्त वनस्पतियों के रस और काषाय के साथ पारे का घर्षण करना और गन्धक, अभ्रक तथा कुछ क्षार पदार्थों के साथ पारे का संयोजन करना प्रमुख है। रसवादी यह मानते हैं कि क्रमश: सत्रह शुद्धिकरण प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद पारे में रूपान्तरण (स्वर्ण या रजत के रूप में) की सभी शक्तियों का परीक्षण करना चाहिए। यदि परीक्षण में ठीक निकले तो उसको अठारहवीं शुद्धिकरण की प्रक्रिया में लगाना चाहिए। इसके द्वारा पारे में कायाकल्प की योग्यता आ जाती है।
धातुओं को मारना:- 

विविध धातुओं को उपयोग करने हेतु उसे मारने की विधि का वर्णन किया गया है। प्रयोगशाला में धातुओं को मारना एक परिचित विधि थी। गंधक का सभी धातुओं को मारने में उपयोग होता था। अत: ग्रंथ में गंधक की तुलना सिंह से की गई तथा धातुओं की हाथी से और कहा गया कि जैसे सिंह हाथी को मारता है उसी प्रकार गंधक सब धातुओं को मारता है।
जस्ते का स्वर्ण रंग में बदलना-हम जानते हैं जस्ता (झ्त्दत्त्‌) शुल्व (तांबे) से तीन बार मिलाकर गरम किया जाए तो पीतल (एद्धठ्ठद्मद्म) धातु बनती है, जो सुनहरी मिश्रधातु है। नागार्जुन कहते हैं-
क्रमेण कृत्वाम्बुधरेण रंजित:।
करोति शुल्वं त्रिपुटेन काञ्चनम्‌॥
(रसरत्नाकार-३)
धातुओं की जंगरोधी क्षमता-गोविन्दाचार्य ने धातुओं के जंगरोधन या क्षरण रोधी क्षमता का क्रम से वर्णन किया है। आज भी वही क्रम माना जाता है।
सुवर्ण रजतं ताम्रं तीक्ष्णवंग भुजङ्गमा:।
लोहकं षडि्वधं तच्च यथापूर्व तदक्षयम्‌॥
(रसार्णव-७-८९-१०)
अर्थात्‌ धातुओं के अक्षय रहने का क्रम निम्न प्रकार से है- सुवर्ण, चांदी, ताम्र, वंग, सीसा, तथा लोहा। इसमें सोना सबसे ज्यादा अक्षय है।
तांबे से मथुर तुप्ता

(ड़दृद्रद्रड्ढद्ध द्मद्वथ्द्रण्ठ्ठद्यड्ढ) बनाना-
ताम्रदाह जलैर्योगे जायते
तुत्यकं शुभम्‌।
अर्थात्‌ तांबे के साथ तेजाब का मिश्रण होता है तो कॉपर सल्फेट प्राप्त होता है।
भस्म:- 

रासायनिक क्रिया द्वारा धातु के हानिकारक गुण दूर कर उन्हें राख में बदलने पर उस धातु की राख को भस्म कहा जाता है। इस प्रकार मुख्य रूप से औषधि में लौह भस्म (क्ष्द्धदृद), सुवर्ण भस्म (क्रदृथ्ड्ड), रजत भस्म (च्त्थ्ध्ड्ढद्ध), ताम्र भस्म (क्दृद्रद्रड्ढद्ध), वंग भस्म (च्र्त्द), सीस भस्म (ख्र्ड्ढठ्ठड्ड) प्रयोग होता है।
वज्रसंधात (ॠड्डठ्ठथ्र्ठ्ठदद्यत्दड्ढ क्दृथ्र्द्रदृद्वदड्ड)-

वराहमिहिर अपनी बृहत्‌ संहिता में कहते हैं-
अष्टो सीसक भागा: कांसस्य द्वौ तु रीतिकाभाग:।
मया कथितो योगोऽयं विज्ञेयो वज्रसड्घात:॥
अर्थात्‌ एक यौगिक जिसमें आठ भाग शीशा, दो भाग कांसा और एक भाग लोहा हो उसे मय द्वारा बताई विधि का प्रयोग करने पर वह वज्रसङ्घात बन जाएगा।
आसव बनाना-
चरक के अनुसार ९ प्रकार के आसव बनाने का उल्लेख है।
१. धान्यासव – ङदृदृद्यद्म
२. फलासव-क़द्धद्वत्द्यद्म
३. मूलासव-क्रद्धठ्ठत्दद्म ठ्ठदड्ड द्मड्ढड्ढड्डद्म
४. सरासव-ज़्दृदृड्ड
५. पुष्पासव-क़थ्दृध्र्ड्ढद्धद्म
६. पत्रासव-थ्ड्ढठ्ठध्ड्ढद्म
७. काण्डासव-द्मद्यड्ढथ्र्द्म (च्द्यठ्ठड़त्त्द्म)
८. त्वगासव-एठ्ठद्धत्त्द्म
९. शर्करासव-च्द्वढ़ड्ढद्ध
इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के गंध, इत्र सुगंधि के सामान आदि का भी विकास हुआ था।
ये सारे प्रयोग मात्र गुरु से सुनकर या शास्त्र पढ़कर नहीं किए गए। ये तो स्वयं प्रत्यक्ष प्रयोग करके सिद्ध करने के बाद कहे गए हैं। इसकी अभिव्यक्ति करते हुए अनुमानत: १३वीं सदी के रूद्रयामल तंत्र के एक भाग रस कल्प में रस शास्त्री कहता है।
इति सम्पादितो मार्गो द्रुतीनां पातने स्फुट:
साक्षादनुभवैर्दृष्टों न श्रुतो गुरुदर्शित:
लोकानामुपकाराएतत्‌ सर्वें निवेदितम्‌
सर्वेषां चैव लोहानां द्रावणं परिकीर्तितम्‌-
(रसकल्प अ.३)
अर्थात्‌ गुरुवचन सुनकर या किसी शास्त्र को पढ़कर नहीं अपितु अपने हाथ से इन रासायनिक प्रयोगों और क्रियाओं को सिद्धकर मैंने लोक हितार्थ सबके सामने रखा है।
प्राचीन रसायन शास्त्रियों की प्रयोगशीलता का यह एक प्रेरणादायी उदाहरण है।

Friday, June 17, 2011

उन सब लोगों के लिते जो रस शास्त्र को समझना चाहते हैं. यहाँ मैं रस विद्या का विवेचन करूँगा. अगर आपकी इसमें रूचि है तो टिप्पणी अवश्य करें.

मैं कुरुक्षेत्र का निवासी हूँ. मेरी उम्र ३८ वर्ष है.  मेरे गुरु स्वामी निखिल हैं.
रस मणि का निर्माण एक जटिल रासायनिक प्रक्रिया है. जिसके लिए अटूट धैर्य , निष्ठा, लगन, समर्पण और धन की आवश्यकता होती है. अगर आप अपना पूरा जीवन समर्पित कर सकते हैं तो आपका स्वागत है, अन्यथा इसे भूल जाइये.  मुझे २३ वर्ष हो गए हैं. परन्तु आपको  समय कम  लगेगा क्योंकि आपको मेरी तरह कई जगहों पर भटकना नहीं पड़ेगा. 

मैं अभी रूस में हूँ  मैं योग-तंत्र की साधना करता हूँ रस मणि के निर्माण और सुरक्षा के लिए रस भैरव, रसेश्वरी देवी और शिव साधना के साथ-साथ कोई एक उग्र महाविद्या साधना ( छिन्नमस्ता ) भी होनी चाहिए. रस शाला  के निर्माण के लिए कुछ साधनों और सामग्री की आवश्यकता होती है. मैं तुम्हे सब बताऊंगा.. पर भारत वापस आने के बाद. मैं अगस्त में वापस आ रहा हूँ. शायद २० अगस्त को. तब तक इंतजार करो और मेरा ब्लॉग पढ़ते रहो.    हाँ...   तुम्हे इस कार्य में कुछ कच्ची मिटटी की जमीन की भी जरुरत पड़ेगी. 


क्या तुमने रसशास्त्र का अध्ययन किया है? 


रस शास्त्र का अध्ययन करना अति आवश्यक है. बिना ज्ञान के सिद्धि नहीं मिलती. .   आधुनिक रसायन शास्त्र का ज्ञान अनिवार्य है. इससे कार्य-कारण सिद्धांत को समझने में सहायता मिलती है. पर अंग्रेजी पुस्तकों के सहारे रस मणि नहीं बनाई जा सकती. संस्कृत का ज्ञान अनिवार्य तो नहीं है पर अगर हो तो अच्छा है.

पारद के १८ संस्कार होते हैं. पहले ८ संस्कार शोधन के लिए और अगले १० संस्कार विभिन्न गुणों को पैदा करने के लिए होते हैं. 
रस मणि  जो की उड़ने की शक्ति देती है उसे आकाश गमन गुटिका कहते हैं. 
पारद के १६ वें संस्कार से पारद में इस शक्ति का उदय होता हैं.
रस मणि में १००% पारद ही होता है. 

Thursday, September 9, 2010

BEAUTY- A joy for ever


BEAUTY- A joy for ever
If there is anything that is sure to attract anyone's attention, especially today when looking smart, charming and pleasing is no longer considered prerogative of only the fair complexioned, it s the right way for grooming one's appearance, one's looks, one's personality to the best possible levels.Now we present valuable tips for gaining a handsome appearance, effective remedies to overcome one's physical drawbacks and some rare formulas for beautifying oneself. And there are no mare off-hand suggestions, rather all devices have been tested and their result confirmed.Above all, these valuable pieces have been culled from the rich treasure of knowledge of a great erudite of Aaurveda, who explored each and every corner of the Indian subcontinent and the Himalayas in search of rare herbs which could banish all diseases and transform even old age in to youth. His search also helped discover lost texts which contained miraculous formulas to regain lost youth and beauty.Some of these very formulas have been reproduced in this text for the benefit of the readers.

BEAUTY--for ever

Age, sex, social status, in fact nothing stands in the way when it comes to looking beautiful, youthful and charming.Hundred of books have been written over the ages, several methods have been developed to prevent old age from setting in, but none has proved as potent and as successful as the miraculous formulas that have found elucidation in the modern age several scriptures were lost and more unluckily valuable herbs became extinct.Thus even the precious science of Aaurveda, whose base rests chiefly on herbs and medical plants, became important.With the undoubting spirit, however, the world renowned scholar of Aaurveda ie system, he resurrected this ancient science of medicine to its full glory and brought to surface those very magical formulas along with identifying herbs that were to be used in them.Some of these very rare and secret formulas, very precious for women desirous of a perfect figure, fair complexion, long hairs, beautiful looks and alluring charms, find place in this unique work. Small this article might seem, yet it hides some very priceless formulas for becoming the most beautiful man or woman of one's times.YOUNG AT HEARTEach and every person wishes to achieve health and longevity in life. One desire to remain attractive and youthful throughout life, but unluckily one does not know the way to achieve such a state permanently. As a result, people run after all possible methods to achieve everlasting beauty.Either they make use of herbal medicines or they may go to certain Swamis, and obtain some ash and their blessings. Throughout their lives they just keep worrying about their health. In order to achieve permanent health and longevity a person should always remain fresh and cheerful and keep the mind free of all tensions and worries, whatever the circumstances may be.Robert Hutchins is a perfect example of leading life in his positive way. In 1919 an amazing event occurred which resulted in a nation-wide agitation in the educational lobbies of America. Till a few years back Robert used to sell books in trains, but in next eight years with his efforts and hard labour he became President of Chicago University. All eminent scholars of America gathered to see him. The reason behind his tremendous success was that he lived every moment of his life to the fullest and made proper use of it.When Prince of Wales (Edward VIII) was in school his classmates used to pick-up quarrels with him without any reason and used to beat him up. When the class teacher came to know about this he scolded all the students. On being asked the reason for beating Edward, they said it was done so that on growing up they could tell people that they had licked the King of England!This incident highlights the fact that students considered themselves insignificant compare to Edward. Many people feel immensely satisfied by criticizing those who are more educated and successful than them. By false criticism and fake stories they give themselves false satisfaction. In fact, by doing so they are in a way just proving their own insignificance. But today people have become indifferent to such criticism and it does not affect them much.Once my Guruji told me that a person should try to maintain his cool during any kind of criticism. This will reflect his magnanimity at that moment. Second important point he told me was that as long as one is physically and mentally active, one will retain one's youth but once a person becomes idle and indolent old age sets in.A government employee remains active up-to the age of 58 years, but as soon as he retires, he starts exhibiting signs of old age; his face gets wrinkled and becomes lusterless. This results because he starts believing that he has retired and has nothing to do.Dr. William Martin at the age of 30 years went to Germany to study Psychology and soon after became a lecturer in an University. At the age of 65 she retired from her job. Later she opened a hotel in San Francisco. At 70 she learnt driving and at 81 she traveled through the length and breadth of Mexico, all alone. Next year she started farming on a 64 acre land and when 102 she breathed her last, and even then she looked much younger and healthy!Mrs. Moses learned painting at the age of 76 and presented paintings in 35 exhibitions. Frank Lloyd, constructed buildings at the age of 80 with same agility as at the age of 35!Dr. Lilian Gailbreth is a mother of 12 children and she created a furore by writing a novel at the age of 81 years! India's famous industrialist J.R.D.Tata flew a plane from Pakistan to India on his own at the age of 72 and proved that he was still as young as before.During IInd World War, weakened England was guided by Churchill at the age of 75 years, and even at the age he used to work for 20 hrs. at a stretch. In this period he had to suffer a lot of criticism but even then he remained firm and got his name inscribed in golden letters in world history.Once when asked by a spokesman whether he was affected by criticism, Churchill replied—"I am so busy that I don't even get time to read them."Throughout the world there have been only three personalities who reached the top even after their complete downfall. They were ---Winston Churchill (Prime Minister of England), President Digal of France and India's Prime Minister Indira Gandhi. Through their life they remained active and retained their youth.In fact old age does not come on its own; rather we force it into our lives through our outlook. The only way to achieve ever youthful beauty and perfect health is to keep on doing your choicest job and to cultivate new hobbies and thus say goodbye to old age.Try this today and your long lost youth will be back soon.~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

How to Change your dark complexion into fair one.
Formulas about complexion

TRUE BEAUTY----
A JOY FOREVER

It is said beauty is grace of God bestowed upon some fortunate beings. But with lapse of time this beauty and youth are lost. There are certain means by which we can attain a celestial beauty. The ancient medicinal science of Aaurved is replete with beautifying devices through adoption of which any lady having attained a charming beauty, can become a dream girl.

Every lady nurtures a dream of remaining ever attractive. She wants her
physique to be youthful and beautiful. She wants to have an innocent and captivating countenance which would make men stare at her ceaselessly. She wishes her entire body to be moulded in a perfect beautiful figure so that she might look like a beauty queen.

There are six criteria for matchless beauty----

I. A fair and attractive complexion, like milk imbued with saffron.
II. A slim, healthy and proportionate physique.
III. Attractive, shapely and large breasts.
IV. Long black, dense and
silky hair touching the knees.
V. A slim waist rounded hips.
VI. A magnetic attraction in the entire body.

Although there are several beautifying herbs elucidated in the scriptures of Aaurved, I am revealing only those which have proved their efficacy.

1. Unique Formula for Fair Complexion

In absence of a fair complexion, sharpness of features goes in vain. According to medical sciences, beneath the skin special type of cells are present, called Melanocytes which produce a pigment called Melanin and this is in fact responsible for determining the colour of skin. If somehow we manipulate these tissues we can convert a dark complexion into a fair one. Formula is not given here to stop misuse. But we can provide it on need. The main herbs of this unique formula are ---

a. Fresh Rose petals%u2026
b. Gunja (Abrus Presotorins)
c. Bhangra
d. Gular Fruit (Ficus Glomerarta)
e. Vidari Kand (Succulent Tuber)
f. Ivory Powder
g. Fresh Coconut Oil

This ointment is applied all over the body before retiring to bed at night and next morning one should take bath with luke warm water. Within a few days this preparation converts a dark, black complexion into a fair one. The skin starts glowing beautifully and becomes attractive, and fragrance starts emanating from the entire body. Wrinkles of body vanish away and it is endowed with alluring beauty.
This preparation is undoubtedly unique and authent
ic.





Friday, April 16, 2010

पारद की कविता

Space is

The universe.


The nothingness in everything space is.

Within its stillness lies the very essence of life and death itself,

Where everything is created and destroyed.

It's omnipresence and eternity transcends all space and time;

To truly understand the soul, look deep into the mind and beyond.

Between the stars and galaxies is where true wisdom resides.

For, outer space is - inner space.


The nothingness

Space is.

~ Aidan Aquinas ~

Space in its timelessness

beauty and eternity,

holds true the full extent of knowledge;

that has mystified mankind since the beginning of our existence.

In all its glorified entirety, it is the key to understanding the
universe and our purpose.

The space we are the space we were.

The universe encompasses everything but is nothingness in actuality.

~ Qian Ling




Sunday, June 14, 2009